राग

'राग' शब्द संस्कृत की 'रंज्' धातु से बना है। रंज् का अर्थ है रंगना। जिस तरह एक चित्रकार तस्वीर में रंग भरकर उसे सुंदर बनाता है, उसी तरह संगीतज्ञ मन और शरीर को संगीत के सुरों से रंगता ही तो हैं। रंग में रंग जाना मुहावरे का अर्थ ही है कि सब कुछ भुलाकर मगन हो जाना या लीन हो जाना। संगीत का भी यही असर होता है। जो रचना मनुष्य के मन को आनंद के रंग से रंग दे वही राग कहलाती है
हर राग का अपना एक रूप, एक व्यक्तित्व होता है जो उसमें लगने वाले स्वरों और लय पर निर्भर करता है। किसी राग की जाति इस बात से निर्धारित होती हैं कि उसमें कितने स्वर हैं। आरोह का अर्थ है चढना और अवरोह का उतरना। संगीत में स्वरों को क्रम उनकी ऊँचाई-निचाई के आधार पर तय किया गया है।सासे ऊँची ध्वनिरेकी, ‘रेसे ऊँची ध्वनिकी औरनिकी ध्वनि सबसे अधिक ऊँची होती है। जिस तरह हम एक के बाद एक सीढ़ियाँ चढ़ते हुए किसी मकान की ऊपरी मंजिल तक पहुँचते हैं उसी तरह गायक सा-रे-----नि-सां का सफर तय करते हैं। इसी को आरोह कहते हैं। इसके विपरीत ऊपर से नीचे आने को अवरोह कहते हैं। तब स्वरों का क्रम ऊँची ध्वनि से नीची ध्वनि की ओर होता है जैसे सां-नि-----रे-सा। आरोह-अवरोह में सातों स्वर होने पर रागसम्पूर्ण जातिका कहलाता है। पाँच स्वर लगने पर रागऔडवऔर छह स्वर लगने परषाडवराग कहलाता है। यदि आरोह में सात और अवरोह में पाँच स्वर हैं तो रागसम्पूर्ण औडवकहलाएगा। इस तरह कुल 9 जातियाँ तैयार हो सकती हैं जिन्हें राग की उपजातियाँ भी कहते हैं। साधारण गणित के हिसाब से देखें तो एकथाटके सात स्वरों में 484 राग तैयार हो सकते हैं। लेकिन कुल मिलाकर कोई डे़ढ़ सौ राग ही प्रचलित हैं। मामला बहुत पेचीदा लगता है लेकिन यह केवल साधारण गणित की बात है। आरोह में 7 और अवरोह में भी 7 स्वर होने परसम्पूर्ण-सम्पूर्ण जातिबनती है जिससे केवल एक ही राग बन सकता है। वहीं आरोह में 7 और अवरोग में 6 स्वर होने परसम्पूर्ण षाडव जातिबनती है
कम से कम पाँच और अधिक से अधिक स्वरों से मिल कर राग बनता है। राग को गाया बजाया जाता है और ये कर्णप्रिय होता है। किसी राग विशेष को विभिन्न तरह से गा-बजा कर उसके लक्षण दिखाये जाते है, जैसे आलाप कर के या कोई बंदिश या गीत उस राग विशेष के स्वरों के अनुशासन में रहकर गा के आदि
राग का प्राचीनतम उल्लेख सामवेद में है। वैदिक काल में ज्यादा राग प्रयुक्त होते थे, किन्तु समय के साथ साथ उपयुक्त राग कम होते गये। सुगम संगीत अर्धशास्त्रीय गायनशैली में किन्ही गिने चुने रागों तालों का प्रयोग होता है, जबकि शास्त्रीय संगीत में रागों की भरपूर विभिन्नता पाई जाती है
हिन्दुस्तानी पद्धति इस्लामी राजाओं की छत्रच्छाया में पली बढी, अतः इसमें पश्चिमीऔर इस्लामी संगीत का सम्मिश्रण हुआ। इसके अलावा इस्लामी शासन के तहत कर्मकांडों में संगीत की प्रकृति बदलती गई। नतीजतन हिन्दुस्तानी संगीत राग अपने पुरातन कर्नाटिक स्वरूप से काफी भिन्न हैं
रागों का विभाजन मूलरूप से थाट से किया जाता है। हिन्दुस्तानी पद्धति में ३२ थाट हैं, किन्तु उनमें से केवल १० का प्रयोग होता है। कर्नाटक संगीत में ७२ थाट माने जाते हैं
शब्दावली
'राग' एक संस्कृत शब्द है इसकी उत्पत्ति 'रंज' धातु से हुई है, जिसका अर्थ है - 'रंगना'  महाभारत काल में इसका अर्थ प्रेम और स्नेह आदि अर्थों में भी हुआ है
इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग बृहद्देशी में हुआ, जहाँ इसका अर्थ "ध्वनि का कर्णप्रिय आरोह-अवरोह" बताया गया है
'रागिनी' राग का स्त्री रूप ही समझा गया है
राग की प्रकृति
राग का मूल रूप हिन्दुस्तानी संगीत के 'बिलावल ठाट' को मान गया है इसके अंतर्गत सुर 'शुद्ध' और 'कोमल' दो भागों में विभक्त हैं
राग और ऋतु
भारतीय मान्यताओं के अनुसार राग के गायन के ऋतु निर्धारित है सही समय पर गाया जाने वाला राग अधिक प्रभावी होता है राग और उनकी ऋतु इस प्रकार है -
राग
रितु
भैरव
शिशिर
हिंडोल
बसंत
दीपक
ग्रीष्म
मेघ
वर्षा
मल्कान
शरद
श्री
हेमंत
राग यमन
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नि लाई संवाद गरेर प्रथम पहर निशि गाउनुहोस
संपूर्ण तीव्र मध्यम यमन आश्रय राग
रागको परिचय -
1) यस रागलाई राग कल्याणको नामले पनि चिनिन्छ राग उत्पत्ति कल्याण थाटबाट हुन्छ अत: यसलाई आश्रय राग पनि भनिन्छ (जब कुनै रागको उत्पत्ति त्यसै नामको थाट देखि हुन्छ) मुगल शासन कालको बेला, मुसलमानहरूले यस रागलाई नाम राग यमन अथवा राग इमन भन्न शुरु गरे।
2) यस रागको विशेषता यो हो कि यसमा तीव्र मध्यमको प्रयोग गरिन्छ। बाकी सबै स्वर शुद्ध लाग्छन।
3) यस रागलाई रात्रिको प्रथम प्रहर या संध्या समय गाइन्छ बजाइन्छ। यसको आरोह अवरोहमा सबै स्वर प्रयुक्त हुन्छन्, अत: यसको जाति भयो संपूर्ण-संपूर्ण (परिभाषा हेर्नुहोस)
4) वादी स्वर - संवादी - नि
आरोह- ऩि रे , म॑ , नि सां
अवरोह- सां नि , म॑ रे सा
 पकड- ऩि रे रे, रे, ऩि रे सा
विशेषताहरू-
) यमन कल्याण जस्तै एक राग हो तर यमन कल्याण दुवैको नामलाई मिलाई दिन देखि एउटा अझै अर्को रागको उत्पत्ति हुन्छ जसलाई राग यमन-कल्याण भन्छन् जसमा दुवै मध्यमको प्रयोग हुन्छ।
) यमनको मंद्र सप्तकको नि देखि गाउन-बजाउन चलन छ। ऩि रे , म॑ नि सां
) यस रागमा ऩि रे रेको प्रयोग धेरै बार गरिन्छ।
) यस रागलाई गंभीर प्रकृतिको राग मानिएको छ।
) यस रागलाई तिनै सप्तकहरूमा गाइने-बजाइने गरिन्छ धेरै राग सिर्फ मन्द्र, मध्य या तार सप्तकमा ज्यादा गाइने बजाउने गरिन्छ , जस्तै राग सोहनी तार सप्तकमा ज्यादा खुल्छ।
यस रागमा धेरै चलेका फिल्मी गानाहरू पनि गाइने गरेका छन्।
सरस्वती चन्द्र- चंदन सा बदन, चंचल चितवन
राम लखन- बडा दुख दीन्हा मेरो लखन ने
चितचोर-जब दीप जले आना
भीगी रात- दिल जुन कह सका त्यो नै राजे दिल
राग भूपाली में बंदिश गाने से पहले निम्नलिखित आवश्यक जानकारी को पढ़ें:

छोटा खयाल गाने की विधि:
किसी भी राग में कोई भी बंदिश गाने से पहले उस राग विशेष का समां बाँधना ज़रूरी होता है। इसलिये, आरोह, अवरोह, पकड़, आलाप आदि गा कर राग को स्थापित किया जाता है। फिर बड़ा खयाल और छोटा खयाल आदि गा कर राग के स्वरूप को और निखारा जाता है। प्रचलन में पहले बड़ा खयाल (जो कि विलम्बित लय में चलता है) के बाद छोटे खयाल (मध्य या द्रुत लय) गाने की प्रथा है, पर कई बार गायक छोटा खयाल ऐसे भी गा सकता है। छोटे ख़याल को गाते समय उसे छोटे छोटे आलाप, और तानों से सँवारा जाता है। तान द्रुत गति से दुगुन या चौगुन में गाते हैं।

स्वरलिपि: (मैं भातखंडे स्वरलिपि पद्धति का इस्तेमाल कर रही हूँ, जो कि एक सरल पद्धति है) संगीत के छात्र को चाहिये कि वो पहले स्वरलिपि के स्वरों को याद कर के गाये और बाद में गीत के शब्द उनमें बैठा ले। अर्थात निम्नलिखित गाने में पहले सरलिपि के स्वरों को गा कर अभ्यास कर ले, फिर गीत के शव्दों को स्वरों मॆं ढाले।

ताल और लय- किसी भी बंदिश को गाते समय ताल और लय का खयाल रखना ज़रूरी होता है। विभिन्न मात्राओं के विविध समुह को ताल कहते हैं। स्वर और लय ही संगी का आधार है। प्रत्येक ताल के कुछ निश्चित बोल होते हैं। बोल धा, धिन, कित, आदि वर्णों से निर्मित होते हैं। तीन ताल १६ मात्राओं का होता है।
सुविधा के लिये प्रत्येक ताल को छोटे छोटे विभागों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक ताल के विभागों की संख्या निश्चित होती है। जैसे कि तीनताल में विभाग हैं। गायक गाते समय हाथ से हर विभाग पर ताल देता है और उसे पता होता है कि वो किस मात्रा पर है। जिस मात्रा पर गाते समय ज़ोर पड़े वहाँ सम माना जाता है जो कि किसी भी ताल की पहली मात्रा मानी जाती है। सम को स्वरलिपि में एक क्रास चिन्ह से दर्शाया जाता है। सम के अलावा खाली (जहाँ तबले में ड्ग्गा नहीं बजता) और ताली अन्य विभागों की प्रथम मात्रा है। खाली को स्वरलिपि में शून्य से दर्शाया जाता है।

राग भूपाली में निम्नलिखित बंदिश तीनताल में है।

राग भूपाली

राग परिचय-

थाट- कल्याण
वर्जित स्वर- , नि
जाति- औडव-औडव
वादी-
संवादी-
गायन समय- रात्रि का प्रथम प्रहर

इस राग का चलन मुख्यत: मन्द्र और मध्य सप्तक के प्रतह्म हिस्से में होती है (पूर्वांग प्रधान राग) इस राग में ठुमरी नहीं गायी जाती मगर, बड़ा खयाल, छोटा खयाल, तराना आदि गाया जाता है। कर्नाटक संगीत में इसे मोहन राग कहते हैं।

आरोह- सा, रे, , , , सा।
अवरोह- सां, , , , रे, सा।
पकड़- , रे ग।, सा रे, ध़ सा।

छोटा खयाल- (तीन ताल मध्यलय)

स्थाई

धनधन कृष्न मुरारी तुम
कृष्न गोवर्धन धारी

अंतरा

कोई कहत तुम कृष्न कन्हैया
कोई कहत भव सिंद्युतरैया
कोई कहत तुम सबदुखहारी

स्वरलिपि:

स्थाई 

--------------------- x---------- ---------
रे रे सा ध़ सा रे - - रे सा रे
कृ॒ ष्न मु रा री तु

- रे सां धसां धप धसां रेंगं रेंसां धप गरे सा
कृ ष्न गो। न। धाऽ ऽऽ ऽऽ ऽऽ रीऽ ऽऽ ऽऽ ऽऽ

अंतरा

- सां सां - सां सां - सां सां
को तु कृ ष्न न्है या

- सां - सां रे सां रें गं रें सां सां
को सिं द्यु रै या

- - रे। सां धसां धप धसां रेंगं रेंसां धप गरे सा
को तु म। सऽ बऽ दुऽ खऽ हाऽ ऽऽ रीऽ ऽऽ

आभार:( गीत मेरे गुरु, श्रीमति जयश्री चक्रवर्ती से मुझे मिला था, मुझे ज्ञात नहीं कि ये कहाँ प्रकाशित हुआ होगा)

तान: (चंद उदाहरण)

खाली से मात्रा बाद शुरु करें-

) सारे गप धसां धप। गप धप गरे सा
) सारे गरे गप धसां धप गरे गरे सा
) सासा रेग रेग पध सांध पग रेग सारे
)सांसां धप गप धसां रेंसां धप गरे सा

१६ मात्रा बाद शुरु करें-

) सारे गरे साध़ सारे गरे गप धप गरे सारे गप धसां धप रेंसां धप गरे सा।
)गग रेग गसा रेरे ध़सा साप पग पप ।गग रेग गरे रेसा धध पप गरे सा

·         राग ध्रूपद
·         राग दिपक
·         राग बहार
·         राग देश
·         राग बिहाग
·         राग ललित
·         राग यमन
·         राग दरबारी
·         राग भैरव
·         राग मालकोश
·         तानसेन
·         सारेगम
राग मालश्री
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·         देवी बन्दनामा गाईने राग
नेपाली समाजमा यो राग दसैको समयमा गाईन्छ |
राग मालश्री
सङ्गीत-भाष्यकारअनुसार राग मालश्रीको उत्पत्ति कल्याण थाँटबाट भएको हो। ऋषभ -रे) धैतत -) यसका वर्जित स्वर हुन्। जाति-औडव, आरोहमा मध्यमको प्रयोग गायन समय साँझपख संवादी सामे हो।
आरोह- सारे गपगप नि सां
अवरोह-सां नि र्भवग सां
"कल्याण मेल संजाता मालश्री कच्यते वुधै ः।
आरोह चावरोह पि रिधहीना तथौ डुवा।।
पञ्चमाऽ भर्वद्वादी संवादी षड्ज इरितः।
गानमस्या समीचीनं सायंकाले मते सताम।।
(श्रीपदवंधोपाध्याय)
हनुमन् मतअनुसार रागिनी मालश्रीलाई राग 'श्री'को पाँच रागिनीहरूमध्ये प्रथम रागिनीमा मालश्री मानिएको छ। आजकाल रागिनीलाई पनि रागै भन्ने चलन छ। यसैले मालश्री स्त्रीप्रधान रागिनी भनिए तापनि यसलाई 'राग' भन्नु उचित हुन्छ।
नेपालमा मालश्रीको आफ्नै अलग अस्तित्व रहेको छ। यस विषयमा कविकेशरी चित्तधर हृदयको बेग्लै धारणा छ। उहाँको विचारमा नेपालमा चलेका मालश्री काफी थाँटअन्तर्गत पर्दछ। यो थाँटबाट उत्पन्न 'मालश्री'मा सम्पूर्ण (सातैस्वर) लाग्छ। वादी संवादी स्वर सामे रहेका छन्। नेपालको पहाडी भेकतिर मालश्री भनेर गाइने बजाइने धुन अर्कै रागमा पर्दछन्। नेपालमा चैतेदसैँ ,जसलाई सानो दसैँ पनि भन्दछन् ,मा पनि डमरुसहित मालश्री राग गाउने चलन |
दसैँको मालश्री धुन विभिन्न क्षेत्रमा विभिन्न किसिमले बजाउने गरेको पाइन्छ। राजधानी नजीकको छिमेकी जिल्ला धादिङको देवी मन्दिरमा बज्ने मालश्रीको आफ्नै किसिमको मौलिकता रहेको छ। यहा दसैँमा बज्ने मालश्री अन्यत्र बज्ने मालश्रीभन्दा फरक रहेको छ। यहाँको मालश्रीमा मुख्य तालबाजा ढोलकी बजाइँदैन। त्यसको सट्टा 'नगरा' दुन्दुभि बजाउने गरिएको छ। सुवि शाहद्वारा सङ्कलित धादिङको पञ्चैबाजाको धुन रेडियो नेपालबाट विजयदशमीभर बजाइन्थ्यो।
राग बहार

राग बहार
विशेषता
यो एक चंचल प्रकृतिको राग हो| प्राचीन ग्रन्थमा यो राग का उल्लेख भेटिदैन,अत: यो राग बहारको रचना मध्य कालमा भएको मानिन्छ| संगीत मर्मज्ञहरू यो राग बागेश्वरी ,अड़ाना मियाँ मल्हारको मिश्रणबाट रचना भएको विश्वाश गर्दछ्न| यो रागको चलन(अलंकार) सप्तकको उत्तर अंग तथा तार सप्तकमा हुने कारण उत्तरांग प्रधान राग अन्तर्गत राखिएको |यो रागको गायन समय मध्य रात्रि हो तथापि बसंत ॠतुमा हर समय गाउने परम्परा |
राग बहारको संक्षिप्त परिचय[सम्पादन गर्ने]
थाट- काफी
जाति-षाडव-षाडव
स्वर-गंधार कोमल ,दुवई निषाद का प्रयोग ,आरोहमा रे ,अवरोहमा स्वर वर्ज्य
वादी स्वर-
संवादी स्वर-सा
गायन-वादन समय -मध्य रात्रि
न्यासको स्वर- सा, और
सम्प्रकृति राग-मियाँ मल्हार
आरोह-सा , _ , नि सां
अवरोह-सां नि_ , , _ रे सा
पकड़-सा , _ , नि_ नि सां
राग जौनपुरी

नि स्वर कोमल रहोस,आरोहनमा हानि।
वादी-सम्वादी ले,जौनपुरीको पहचानि
विद्वानहरू का अनुसार जौनपुर का सुल्तान हुसैन शर्की द्वारा यो रागको रचना भएकोले यहि नामले पुकारिएको हो| यसलाई पूर्ण रूपमा स्वीकार नगरे पनि संगीतग्यहरू यो रागको प्रसार प्रचारमा जौनपुर का सुल्तानको योगदान प्रति एक मत रहेका छन। यो राग आसावरी थाटबाट उत्पन्न भएको मानिछ| राग जौनपुरीमा गंधार, धैवत र् निषाद स्वर कोमल प्रयोग गरिन्छ। केही गायकहरू आरोहमा शुद्ध 'नि'को प्रयोग गर्ने गर्छन तर प्रचलित चाहि कोमल निषाद नै छ। जौनपुरीमा आरोहमा स्वर वर्ज्य अनि अवरोहमा सातै स्वरको प्रयोग हुन्छ| त्यसैले यो रागको जाति षाडव-सम्पूर्ण हो(आरोह-, अवरोह- )| यसको वादी स्वर धैवत सम्वादी स्वर गंधार हुन्छ। जौनपुरीको चलन(अलंकार) अधिकतर सप्तकको उत्तर अङ्ग तथा तार सप्तकमा हुन्छ |यो उत्तरांगवादी राग हो। यस्को गायन-वादनको समय दिनको दोस्रो प्रहर मानिन्छ। जौनपुरीको समप्रकृति राग आसावरी हो।
आसावरीको स्वर - सा,रे ,_ _s रे सा।
जौनपुरीको स्वर - सा,रे , _ _s रे प।
जौनपुरीलाई आसावरी देखि भिन्न राख्न पटक पटक 'रे ' स्वरको प्रयोग गरिन्छ।
थाट - आसावरी
जाति -षाडव सम्पूर्ण हो(आरोह-, अवरोह- )
वादी स्वर -धैवत
सम्वादी स्वर -गंधार
बर्जित स्वर-आरोहमा स्वर वर्ज्य
आरोह - सा रे _ नि_ सां।
अवरोह- सां नि_ _ , _ रे सा।
पकड़- , नि_ _ _s रे प।
राग बागेश्री

यो रागमा , सा , और _ स्वर संगितको प्रचुरता रहन्छ। यसको गायन समय रात्रिको द्वितीय प्रहर मानिन्छ।यो रागको आरोहमा रे , स्वर वर्जित अनि अवरोहमा सातै स्वरको प्रयोग गरिन्छ| यस कारण यो औडव-सम्पूर्ण जातिमा समाहित |यसमा वादी स्वर मध्यम संवादी षडज हुन्छ्। सा , , तथा स्वर राग बागेश्रीमा न्यासको स्वर मानिएको छ। बागेश्रीको सम(निकट)राग -भीमपलासी मानिएको |
बागेश्री - . .नि_ सा , s _ , _ रे सा
भीमपलासी - .नि_ सा , _ , _ रे सा
थाट-काफ़ी
जाति-औडव-सम्पूर्ण
वादी स्वर -मध्यम
संवादी -षडज
गायन समयः द्वितीय प्रहर
निशि गनि मृदु ,मानत मस सम्वाद
आरोह- .नि_ सा _ , नि_ सां।
अवरोह- सां नि_ , _ s _ रे सा।
पकड़ - . .नि_ सा , नि_ , _ , _ रे सा।
राग मारू बिहाग

·         थाट-कल्याण
·         गायन समय-रात्रिको द्वितीय प्रहर
·         जाति-ओडव-सम्पूर्ण (आरोहमा रे, स्वर वर्जित )
·         समप्रकृति राग -बिहाग,कल्याण मार्ग बिहाग
विद्वानहरू माझ यस रागको वादी तथा संवादी स्वर बारेमा मतभेद रहेको |कोहि विद्वान मारू बिहागमा वादी स्वर-गंधार संवादी निषादलाई मान्दछन भने यसको विपरीत अन्य संगीतज्ञ यसमा वादी स्वर पञ्चम संवादी स्वर षडजलाई मान्दछन।प्रस्तुत रागमा दुवै प्रकार का मध्यम स्वरहरू ( शुद्ध तीव्र )को प्रयोग भएको छ। बाकि सवै स्वर शुद्ध प्रयुक्त हुन्छ।
मारू बिहाग आधुनिक रागको श्रेणीमा आउछ। यसको रचयिता उस्ताद स्वर्गीय अल्लादिया खां साहब मानिएको |
मारू बिहागको आरोह,अवरोह पकड़-
·         आरोह-नि(मन्द्र) सा ,(तीव्र),नि,सां
·         अवरोह-सां,नि ,(तीव्र),(तीव्र) रे,सा
-पकड़-,(तीव्र),(तीव्र) रे,सा,नि(मन्द्र)सा ,(तीव्र),,(तीव्र),रे सा
राग देश

·         थाट :खमाज
·         जाति:औडव-सम्पूर्ण
·         आरोहमा गंधार तथा धैवत स्वर वर्ज्य अवरोहमा सातै स्वरको का प्रयोग हुन्छ।
·         वादी स्वर-रे तथा संवादी स्वर-
·         गायन समय: रात्रिको दोस्रो प्रहर।
राग देश एक चंचल प्रकृतिको राग मानिएको अत: यसमा अधिकतर छोटो ख्याल ठुमरी गाईन्छ। आरोहमा शुद्ध नि र् अवरोहमा कोमल निको प्रयोग गरिन्छ (- नि सां,रें नि_ , रे )| आरोहमा , स्वर वर्जित भएता पनि यदाकदा रागको सुंदरताको लागि अथवा धको प्रयोग मींड द्रुत स्वरहरूको रूपमा गरिएको पाइन्छ |उदाहरणको लागि रेगम रे तथा धनि यहाँ नि स्वरोंको माथि मीड़ चिन्ह लगाईन्छ। राग देश पूर्वांग प्रधान राग हो यसमा स्वरको संगती पटक पटक देखाईन्छ। राग देशसँग मिल्दो जुल्दो रागहरूमा सोरठ तिलक कामोदलाईलिइन्छ
·         आरोह-( नि-मन्द्र) सा रे, ,नि सां
·         अवरोह-सां नि_ , रे ,गऽ (नि-मन्द्र) सा
·         पकड़- रे,गऽ ( नि-मन्द्र) सा

राग बिहाग


बिहाग गम्भीर प्रकृतिको रागमा गनिन्छ। रागको चलन(अलंकार) मन्द्र,मध्य तथा तार ,तीनै सप्तकमा समान रूपले हुन्छ। यसको गायन समय-रात्रि का प्रथम प्रहर मानिएको |राग-यमन कल्याण यो रागसँग मिल्दो जुल्दो मानिन्छ|
थाट- बिलावल
जाति-औड़व सम्पूर्ण ( आरोह : स्वर,अवरोह - स्वर )
वादी स्वर-गंधार
सम्वादी स्वर-निषाद
स्वर-सबै शुद्ध,आरोहमा रे, वर्ज्य |विवादी स्वर मानेर तीव्र मध्यमको अल्प प्रयोग गरिन्छ| तीव्र" " का प्रयोग बिल्कुल नगरे यो रागलाई 'शुद्ध बिहाग' भनिन्छ।
न्यासको स्वर-सा,, और नि
आरोह- नि(मन्द्र) सा , ,नि सां।
अवरोह-सां नि, ,(तीव्र) ,रे सा।
पकड़-नि(मन्द्र) सा ,(तीव्र) ,रे सा।
राग हंसध्वनि

राग हंसध्वनि कनार्टक पद्धतिको राग हो ,तथापि आजकल उत्तर भारत लगायत अन्त पनि धेरै लोकप्रिय छ। यसको थाट संबन्धमा दुईटा मत | केही विद्वान यो राग बिलावल थाट कोही कल्याण थाट जन्य मान्दछ्न। यो रागमा मध्यम तथा धैवत स्वर वर्जित ,अत: यसको जाति औडव-औडव(आरोह , अवरोह) मानिन्छ। सबै शुद्ध स्वरको प्रयोगको साथ साथ पञ्चम रिषभ,रिषभ निषाद एवम षडज पञ्चम स्वर संगति पटक पटक प्रयुक्त हुन्छ। यो रागको निकट रागमा राग-शंकराको नाम लिइन्छ |
गायन समय :रात्रिको द्वितीय प्रहर।
आरोह-सा रे, नि सां
अवरोह-सां नि रे, रे,नि (मन्द्र) (मन्द्र) सा।
पकड़-नि रे,रे रे सा
राग ललित

थाट-मारवा
स्वर-रिषभ कोमल , शुद्ध अनि तीव्र दुबै मध्यमको प्रयोग | बाकी सबै स्वर शुद्ध प्रयोग हुन्छ
वर्जित स्वर -पंचम
जाति- षाडव-षाडव ( आरोह्, अवरोह्)
वादी स्वर-मध्यम
संवादी स्वर- षडज
न्यासको स्वर-,,
गायन-वादन समय-रात्रिको अंतिम प्रहर
राग यमन

नि लाई संवाद गरेर प्रथम पहर निशि गाउनुहोस
संपूर्ण तीव्र मध्यम यमन आश्रय राग
रागको परिचय -
1) यस रागलाई राग कल्याणको नामले पनि चिनिन्छ राग उत्पत्ति कल्याण थाटबाट हुन्छ अत: यसलाई आश्रय राग पनि भनिन्छ (जब कुनै रागको उत्पत्ति त्यसै नामको थाट देखि हुन्छ) मुगल शासन कालको बेला, मुसलमानहरूले यस रागलाई नाम राग यमन अथवा राग इमन भन्न शुरु गरे।
2) यस रागको विशेषता यो हो कि यसमा तीव्र मध्यमको प्रयोग गरिन्छ। बाकी सबै स्वर शुद्ध लाग्छन।
3) यस रागलाई रात्रिको प्रथम प्रहर या संध्या समय गाइन्छ बजाइन्छ। यसको आरोह अवरोहमा सबै स्वर प्रयुक्त हुन्छन्, अत: यसको जाति भयो संपूर्ण-संपूर्ण (परिभाषा हेर्नुहोस)
4) वादी स्वर - संवादी - नि
आरोह- ऩि रे , म॑ , नि सां अवरोह- सां नि , म॑ रे सा पकड- ऩि रे रे, रे, ऩि रे सा
विशेषताहरू-
) यमन कल्याण जस्तै एक राग हो तर यमन कल्याण दुवैको नामलाई मिलाई दिन देखि एउटा अझै अर्को रागको उत्पत्ति हुन्छ जसलाई राग यमन-कल्याण भन्छन् जसमा दुवै मध्यमको प्रयोग हुन्छ।
) यमनको मंद्र सप्तकको नि देखि गाउन-बजाउन चलन छ। ऩि रे , म॑ नि सां
) यस रागमा ऩि रे रेको प्रयोग धेरै बार गरिन्छ।
) यस रागलाई गंभीर प्रकृतिको राग मानिएको छ।
) यस रागलाई तिनै सप्तकहरूमा गाइने-बजाइने गरिन्छ धेरै राग सिर्फ मन्द्र, मध्य या तार सप्तकमा ज्यादा गाइने बजाउने गरिन्छ , जस्तै राग सोहनी तार सप्तकमा ज्यादा खुल्छ।
यस रागमा धेरै चलेका फिल्मी गानाहरू पनि गाइने गरेका छन्।
सरस्वती चन्द्र- चंदन सा बदन, चंचल चितवन
राम लखन- बडा दुख दीन्हा मेरो लखन ने
चितचोर-जब दीप जले आना
भीगी रात- दिल जुन कह सका त्यो नै राजे दिल
राग दरबारी

मूल नामः दरबारी कान्हड़ा
राग परिचय- प्राचीन संगीत ग्रन्थमा राग दरबारी -कान्हड़ाको लागि बिभिन्न नामको उल्लेख गरिएको छ। कतै कतै यसलाई कणार्ट, कणार्टकी ,कणार्ट गौड़ पनि भनिन्छ। वस्तुत: कन्हण शब्द कणार्ट शब्द कै अपभ्रन्श रूप हो। कान्हड़ाको अगाडि दरबारी शब्दको प्रयोग मुगल शासनको समय देखि प्रचलित भएको मानिन्छ| कान्हड़ाको कुल १८ प्रकार मानिएको - दरबारी,नायकी,हुसैनी,कौंसी,अड़ाना,शहाना,सूहा,सुघराई,बागे्श्री,काफ़ी,गारा,जैजैवन्ती,टंकी,नागध्वनी,मुद्रिक,कोलाहल,मड़ग्ल श्याम कान्हड़ा। यी मध्ये धेरै आजकल बिलकुल प्रचारमा छैन।
दरबारी -कान्हड़ा एक गम्भीर प्रकृतिको राग हो। विशेषता-यो राग आलापको योग्य | पूर्वांग-वादी राग हुना का कारण यसको विस्तार अधिकतर मध्य सप्तकमा हुन्छ। विलम्बित लयमा यसको गायन एकदम सुन्दर रहन्छ।
थाट-आसावरी
स्वर-गन्धार,निषाद र् धैवत कोमल शेष शुद्ध स्वरको प्रयोग्
जाति-सम्पूर्ण षाडव (आरोह-, अवरोह-)
वादी स्वर-रिषभ(रे)
सम्वादी स्वर-पञ्चम()
समप्रकृति राग-अड़ाना
गायन समय-रात्रिको द्वितीय प्रहर
आरोह- सा रे _s _- नि_ सां,
अवरोह-सां, ध॒ , नि॒, , , ग॒, रे सा
पकड़-ग॒ रे रे , सा, ध़॒ नि़॒ सा रे सा

राग भीमपलासी


यो राग पर्याप्त थाटदेखि निस्कन्छ। आरोहमा ?रे"' ?"' लाग्दैन अवरोहमा सब स्वर लाग्दछन्, यस कारण यसको जाति औडव-सम्पूर्ण मानिन्छ। यसमा ?"' ?नी"' कोमल लाग्दछन्। वादी स्वर ?"' सम्वादी स्वर ?"' मानिन्छ।
गाउने-बजाउने समय दिनको तेस्रो प्रहर हो।
आरोह--, , ज्ञ, सं।
अवरोह--सं, , , ज्ञ रे स।
पकड़-- , ज्ञ, , ज्ञ ज्ञ रे स।
राग मालकोश

राग मालकोश
·         थाट- भैरवी
·         जाति- औडव-औडव
·         वर्ज्य स्वर- रिषभ,पञ्चम
·         वादी स्वर- मध्यम
·         संवादी- षडज
·         कोमल स्वर- गंधार,धैवत और निषाद
·         न्यास स्वर- सा,_,
·         गायन समय- रात्रिको तेस्रो प्रहर
·         समप्रकृति राग- चंद्रकोश
·         मालकोशको स्वरमा 'नि' स्वर शुद्ध गरी गायन हुदा यहि राग चंद्रकोश भनि चिनिन्छ
·         यो रागमा पञ्चम वर्जित हुने हुदा यसलाई गाउदा तानपूराको प्रथम तारको मंद्र मध्यम वाट प्राप्त हुन्छ ।मालकोश गम्भीर एवम् शांत प्रकृतिको राग हुदा मीड़ प्रधान राग मानिछ|
·         आरोह- सा _ ,_ _नि सां
·         अवरोह- सां _नि _ ,_ _ सा
·         पकड़- _(मंद्र) _नि(मंद्र) सा , _ _ सा
राग मालकोश

राग मालकोश
·         थाट- भैरवी
·         जाति- औडव-औडव
·         वर्ज्य स्वर- रिषभ,पञ्चम
·         वादी स्वर- मध्यम
·         संवादी- षडज
·         कोमल स्वर- गंधार,धैवत और निषाद
·         न्यास स्वर- सा,_,
·         गायन समय- रात्रिको तेस्रो प्रहर
·         समप्रकृति राग- चंद्रकोश
·         मालकोशको स्वरमा 'नि' स्वर शुद्ध गरी गायन हुदा यहि राग चंद्रकोश भनि चिनिन्छ
·         यो रागमा पञ्चम वर्जित हुने हुदा यसलाई गाउदा तानपूराको प्रथम तारको मंद्र मध्यम वाट प्राप्त हुन्छ ।मालकोश गम्भीर एवम् शांत प्रकृतिको राग हुदा मीड़ प्रधान राग मानिछ|
·         आरोह- सा _ ,_ _नि सां
·         अवरोह- सां _नि _ ,_ _ सा
·         पकड़- _(मंद्र) _नि(मंद्र) सा , _ _ सा


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